बादलों से कुछ दिनो की लुका-छुपी के बाद, आसमान के एक कोने में, सूरज अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा था। बंद खिड़की की सुराख से उन किरणों ने अपना रास्ता बनाते हुए मनु के चेहरे को होले से छुआ, मनु माँ..... माँ..... कहती हुई बैठ गयी। किरणों की उन छुअन ने उसे माँ की याद दिला दी... मगर, तभी उसे, स्मरण हो आया.... अब माँ कहाँ वो तो बहुत दूर चली गयी हैं.... जहाँ चाह कर भी कोई नहीं पहुँच सकता। हाल ही में आये केदारनाथ के उस विनाशकारी तूफ़ान ने, मनु जैसे, कितने लोगों के सर से अपनों का साया हमेशा के लिए उठा लिया था। सुना था उसने की जल जीवन हैं, मगर उसी जीवनदायनी जल ने असंख्यो को जलमग्न कर दिया था।
'मनु ओ मनु, कितना सोयेगी, काम पर जाना नहीं, और चाय नहीं मिलेगी आज' पिता की आवाज़ सुन वो हडबडा कर खाट से उतरी और रसोई की ओर भागी। चूल्हे पर चढ़े उस खोलते हुए पानी से
निकलती उस भाप की तरह उसके सारे ख्वाब न जाने कहाँ उड़ गए थे। पिता को चाय और पाव देकर वो स्नान करने चली गयी। एक वक़्त था जब वो स्नान करते वक़्त साबुन के बुलबुलों से खेला करती थी , और उन पारदर्शी बुलबुलों में तिरते रंगों को देख सोचा करती थी... ये रंग आते कैसे हैं। अब तो वो पल ही कहाँ। जहाँ माँ पहले काम करती थी, उन्ही एक -दो घरो में उसके पिता ने उसे काम पर लगा दिया था। हमेशा चिड़ियाँ की तरह चहचहाने वाली मनु चुप-चुप सी हो गयी थी। जिम्मेदारियों ने उसे उम्र से पहले ही परिपक्व बना दिया था। स्नान कर उसने माँ की तस्वीर के आगे अगरबत्ती लगा दी और निकल पड़ी.… अब उसकी ज़िन्दगी घडी की सुइयों की तरह हो गयी थी।
आज फिर से काम पर जाते हुए उसने वही गीत सुना जो सड़क पार स्थित स्कूल में सुबह की प्रार्थना के तौर पर गाया जाता था ' इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विशवास कमजोर हो न ' एक समय था जब वो भी उन बच्चो के साथ मिल ये गीत गाया करती थी। माँ ने सारी तकलीफों का सामना करते हुए.…. अपने पति की नाराज़गी को बर्दास्त कर उसे स्कूल भेजा था। लेकिन माँ के जाने के बाद उसके बापू ने स्कूल जाने पर रोक लगा दी। अब कौन हैं जो उसके लिए आवाज़ उठाये
ख़ामोशी से वो सब सहन किये जा रही थी.…अपने बापू से कुछ भी कह पाने की हिम्मत उसमे न थी
एक अवर्णित दर्द लिए वो जिए जा रही थी। क्या कभी वो अपने शिक्षित होने का सपना पूरा कर पाएगी।
एक दिन ऐसे ही काम से लौटते वक़्त, उसने स्कूल के गेट पर एक बुजुर्ग महिला को परेशानी की हालत में देखा। वो सड़क पार कर उनके पास पहुँची ' क्या बात हैं ? आप इतनी परेशान क्यूँ हैं ? 'उसने पुछा। पता लगा की वो उसी स्कूल में पढने वाले एक बच्चे की दादी हैं और अपने पोते को लेने आई हैं। 'रोज़ तो वो अपनी माँ के साथ ही आता हैं, जो इस स्कूल में टीचर हैं , मगर आज वो बीमार होने की वजह से स्कूल नहीं आ पायी इसलिए मुझे आना पड़ा' पाँच मिनट देर क्या हो गयी आने में.… न जाने कहाँ चला गया.… अब क्या करू ? उन्होंने कहा।
आप घबराइए मत, मैं देखती हूँ , फिर उसने पूछा ' आपके पोते का नाम क्या हैं ?
'नाम तो उसका मयंक हैं.…. मगर मैं उसे बाबू कह के बुलाती हूँ' उन्होंने बताया।
फिर थोडा इधर -उधर तलाश करने पर मयंक उन्हें एक खोमचे वाले के ठेले पर दिखाई पड़ा।
अपनी दादी को सामने देख वो घबरा गया और भागने लगा।
'अरे बाबु ठहर.… कहाँ भागता हैं शैतान। मगर घुटनों में दर्द की वजह से वो उसके पीछे दौड़ नहीं पायी।
मनु उसके पास गयी और उसका हाथ पकड़कर उसे उसके दादी के पास ले गयी।
क्यूँ रे ! बाहर का खायेगा बीमार हो जाएगा ' उसका कान उमेठते हुए कहा।
और लगभग घसीटते हुए उसे ले गयी. और मनु उन्हें ज़ाते हुए देखती रही।
दिन इसी तरह सरकते गए, एक दिन ऐसे ही काम से लौटते हुए उसे पीछे से किसी ने पुकारा
'बिटिया ओ बिटिया' पीछे मुड़ कर उसने देखा तो मयंक की दादी थी।
माफ़ करना बिटिया उस दिन तुम्हारा नाम नहीं पुछ पायी।
'मनु नाम हैं मेरा ' उसने धीरे से कहा।
दादी ने जाना की किस तरह से उसकी माँ का देहांत हुआ और पिता ने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया। उन्हें बड़ा दुःख हुआ ये जानके।
'क्या मैं आपको दादी माँ कह सकती हूँ'? मनु ने सकुचाते हुए पुछा ।
'अरे ! ये भी पूछने की बात हैं ' उन्होंने हँसते हुए कहा।
फिर उन्होंने पुछा -'कहाँ रहती हो तुम?'
मनु ने हाथ के इशारे से अपने घर का रास्ता बताया
'एक दिन मैं तुम्हारे घर जरुर आउंगी ' इतना कह के वो अपने घर चली गयी, और मनु भी अपने घर लौट आई। रात को बिस्तर पर लेटते वक़्त वो सोचने लगी की दादी कही बापू से मेरे पढ़ाई के विषय में तो बात करने नहीं आई , इस विचार से उसके शरीर में एक लहर सी दौड़ गयी, जिसमे एक अनजान सी उम्मीद और संशय दोनों थे।
सुबह उसकी आँख देर से खुली, उसने उठ कर देखा की बापू अभी तक सो रहे हैं।
वो सोचने लगी की वो तो इतनी देर तक सोते नहीं हैं, आज क्या हुआ।
उसने पास जाकर बापू को धीरे से छुआ, एक झटका सा लगा।
हे भगवान! बापू को इतना तेज़ बुखार। वो घबरा गयी बापू .. बापू उसने आवाज़ लगायी
मगर बुखार तेज़ होने की वजह से बापू कुछ बोल नहीं पा रहे थे।
अब वो क्या करे, किसे बुलाये , कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे।
फिर उसे याद आया की एक बार स्कूल में टीचर जी ने कहा था की कैसी भी परिस्तिथि आये इंसान को घबराना नहीं चाहिए. बस उसने फिर बड़े शांत चित से सोचा तभी पास से गुजरते एक ऑटो वाले को रोका और सारी बात बताई। फिर ऑटो वाले की मदद से अपने बापू को पास के ही दवाखाने ले गयी। डॉक्टर ने मुआयना कर दवा लिख दी, और कहा फल वगेरह खिलाओ इन्हें।
अरे मैं फीस कैसे चुकाऊँगी,जल्दी जल्दी में पैसे लाना ही भूल गयी।
ये सब सोच ही रही थी की सामने दादी नज़र आई।
दादी मनु को देख चौंक उठी ' तुम यहाँ क्या कर रही हो ?
'बापू को बुखार हैं उन्हें डॉक्टर साहब को दीखाने लायी थी ,मगर जल्दी जल्दी में बटुआ लाना भूल गयी'.
'तो इसमें चिंता की क्या बात हैं मैं फीस चूका देती हूँ' उन्होंने कहा
उसे दादी से पैसे लेने में संकोच हो रहा था.
दादी उसके मन की स्थति को भाँप गयी' अरे पगली ! दादी भी कहती हैं और संकोच भी करती हैं।
डॉक्टर को फीस चूका कर और दवाई लेकर वो तीनो घर लौट आये।
घर पहुँच कर मनु ने एक पाव खिला कर बापू को दवाई दे दी।
एक आध घंटा बैठ दादी अपने घर लौट गयी।
धीरे -धीरे बापू की तबियत संभलने लगी. और दादी भी इस बीच आती रही।
वो उसके पिता को अपने तरीके से शिक्षा का महत्त्व समझाती ।
शायद उसके पिता को भी साक्षरता का महत्त्व समझ आ रहा था
'माताजी आप हर दिन कुछ न कुछ लेकर आ जाती हैं' बापू ने कहा।
'मैंने मनु को अपनी पोती माना हैं , इस नाते तुम मेरे बेटे हुए , तो क्या एक माँ अपने बेटे से पैसे लेगी 'उन्होंने कहा; अगर कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे तो, एक चीज़ दे द, मेरी पोती को उसके ख्वाब पुरे करने की इज़ाज़त दे दो।
बापू ने मनु को पुकारा ' मनु '
'क्या हैं बापू 'उसने कहा
बापू ने मनु के हाथो को अपने हाथो में लेकर कहा 'आज से ये हाथ सिर्फ और सिर्फ किताब और कलम उठाएंगे; और उसे अपने सीने से लगा लिया।
मनु ,बापू और दादी इन तीनो की आँखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे।
दादी ने अपनी बहु से बात की और उनकी बहु ने स्कूल वालो से।
कुछ दिनों बाद फिर से मनु का दाखिला हो गया।
आज वो घडी आ गयी, जिसका इंतज़ार मनु को कब से था.
एक नयी सुबह, नयी रौशनी लिए, बाँह फैलाये उसका कर रही थी इंतज़ार।
और मनु नयी उड़ान के लिए थी तैयार।
'मनु ओ मनु, कितना सोयेगी, काम पर जाना नहीं, और चाय नहीं मिलेगी आज' पिता की आवाज़ सुन वो हडबडा कर खाट से उतरी और रसोई की ओर भागी। चूल्हे पर चढ़े उस खोलते हुए पानी से
निकलती उस भाप की तरह उसके सारे ख्वाब न जाने कहाँ उड़ गए थे। पिता को चाय और पाव देकर वो स्नान करने चली गयी। एक वक़्त था जब वो स्नान करते वक़्त साबुन के बुलबुलों से खेला करती थी , और उन पारदर्शी बुलबुलों में तिरते रंगों को देख सोचा करती थी... ये रंग आते कैसे हैं। अब तो वो पल ही कहाँ। जहाँ माँ पहले काम करती थी, उन्ही एक -दो घरो में उसके पिता ने उसे काम पर लगा दिया था। हमेशा चिड़ियाँ की तरह चहचहाने वाली मनु चुप-चुप सी हो गयी थी। जिम्मेदारियों ने उसे उम्र से पहले ही परिपक्व बना दिया था। स्नान कर उसने माँ की तस्वीर के आगे अगरबत्ती लगा दी और निकल पड़ी.… अब उसकी ज़िन्दगी घडी की सुइयों की तरह हो गयी थी।
आज फिर से काम पर जाते हुए उसने वही गीत सुना जो सड़क पार स्थित स्कूल में सुबह की प्रार्थना के तौर पर गाया जाता था ' इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विशवास कमजोर हो न ' एक समय था जब वो भी उन बच्चो के साथ मिल ये गीत गाया करती थी। माँ ने सारी तकलीफों का सामना करते हुए.…. अपने पति की नाराज़गी को बर्दास्त कर उसे स्कूल भेजा था। लेकिन माँ के जाने के बाद उसके बापू ने स्कूल जाने पर रोक लगा दी। अब कौन हैं जो उसके लिए आवाज़ उठाये
ख़ामोशी से वो सब सहन किये जा रही थी.…अपने बापू से कुछ भी कह पाने की हिम्मत उसमे न थी
एक अवर्णित दर्द लिए वो जिए जा रही थी। क्या कभी वो अपने शिक्षित होने का सपना पूरा कर पाएगी।
एक दिन ऐसे ही काम से लौटते वक़्त, उसने स्कूल के गेट पर एक बुजुर्ग महिला को परेशानी की हालत में देखा। वो सड़क पार कर उनके पास पहुँची ' क्या बात हैं ? आप इतनी परेशान क्यूँ हैं ? 'उसने पुछा। पता लगा की वो उसी स्कूल में पढने वाले एक बच्चे की दादी हैं और अपने पोते को लेने आई हैं। 'रोज़ तो वो अपनी माँ के साथ ही आता हैं, जो इस स्कूल में टीचर हैं , मगर आज वो बीमार होने की वजह से स्कूल नहीं आ पायी इसलिए मुझे आना पड़ा' पाँच मिनट देर क्या हो गयी आने में.… न जाने कहाँ चला गया.… अब क्या करू ? उन्होंने कहा।
आप घबराइए मत, मैं देखती हूँ , फिर उसने पूछा ' आपके पोते का नाम क्या हैं ?
'नाम तो उसका मयंक हैं.…. मगर मैं उसे बाबू कह के बुलाती हूँ' उन्होंने बताया।
फिर थोडा इधर -उधर तलाश करने पर मयंक उन्हें एक खोमचे वाले के ठेले पर दिखाई पड़ा।
अपनी दादी को सामने देख वो घबरा गया और भागने लगा।
'अरे बाबु ठहर.… कहाँ भागता हैं शैतान। मगर घुटनों में दर्द की वजह से वो उसके पीछे दौड़ नहीं पायी।
मनु उसके पास गयी और उसका हाथ पकड़कर उसे उसके दादी के पास ले गयी।
क्यूँ रे ! बाहर का खायेगा बीमार हो जाएगा ' उसका कान उमेठते हुए कहा।
और लगभग घसीटते हुए उसे ले गयी. और मनु उन्हें ज़ाते हुए देखती रही।
दिन इसी तरह सरकते गए, एक दिन ऐसे ही काम से लौटते हुए उसे पीछे से किसी ने पुकारा
'बिटिया ओ बिटिया' पीछे मुड़ कर उसने देखा तो मयंक की दादी थी।
माफ़ करना बिटिया उस दिन तुम्हारा नाम नहीं पुछ पायी।
'मनु नाम हैं मेरा ' उसने धीरे से कहा।
दादी ने जाना की किस तरह से उसकी माँ का देहांत हुआ और पिता ने उसे स्कूल भेजना बंद कर दिया। उन्हें बड़ा दुःख हुआ ये जानके।
'क्या मैं आपको दादी माँ कह सकती हूँ'? मनु ने सकुचाते हुए पुछा ।
'अरे ! ये भी पूछने की बात हैं ' उन्होंने हँसते हुए कहा।
फिर उन्होंने पुछा -'कहाँ रहती हो तुम?'
मनु ने हाथ के इशारे से अपने घर का रास्ता बताया
'एक दिन मैं तुम्हारे घर जरुर आउंगी ' इतना कह के वो अपने घर चली गयी, और मनु भी अपने घर लौट आई। रात को बिस्तर पर लेटते वक़्त वो सोचने लगी की दादी कही बापू से मेरे पढ़ाई के विषय में तो बात करने नहीं आई , इस विचार से उसके शरीर में एक लहर सी दौड़ गयी, जिसमे एक अनजान सी उम्मीद और संशय दोनों थे।
सुबह उसकी आँख देर से खुली, उसने उठ कर देखा की बापू अभी तक सो रहे हैं।
वो सोचने लगी की वो तो इतनी देर तक सोते नहीं हैं, आज क्या हुआ।
उसने पास जाकर बापू को धीरे से छुआ, एक झटका सा लगा।
हे भगवान! बापू को इतना तेज़ बुखार। वो घबरा गयी बापू .. बापू उसने आवाज़ लगायी
मगर बुखार तेज़ होने की वजह से बापू कुछ बोल नहीं पा रहे थे।
अब वो क्या करे, किसे बुलाये , कुछ समझ नहीं आ रहा था उसे।
फिर उसे याद आया की एक बार स्कूल में टीचर जी ने कहा था की कैसी भी परिस्तिथि आये इंसान को घबराना नहीं चाहिए. बस उसने फिर बड़े शांत चित से सोचा तभी पास से गुजरते एक ऑटो वाले को रोका और सारी बात बताई। फिर ऑटो वाले की मदद से अपने बापू को पास के ही दवाखाने ले गयी। डॉक्टर ने मुआयना कर दवा लिख दी, और कहा फल वगेरह खिलाओ इन्हें।
अरे मैं फीस कैसे चुकाऊँगी,जल्दी जल्दी में पैसे लाना ही भूल गयी।
ये सब सोच ही रही थी की सामने दादी नज़र आई।
दादी मनु को देख चौंक उठी ' तुम यहाँ क्या कर रही हो ?
'बापू को बुखार हैं उन्हें डॉक्टर साहब को दीखाने लायी थी ,मगर जल्दी जल्दी में बटुआ लाना भूल गयी'.
'तो इसमें चिंता की क्या बात हैं मैं फीस चूका देती हूँ' उन्होंने कहा
उसे दादी से पैसे लेने में संकोच हो रहा था.
दादी उसके मन की स्थति को भाँप गयी' अरे पगली ! दादी भी कहती हैं और संकोच भी करती हैं।
डॉक्टर को फीस चूका कर और दवाई लेकर वो तीनो घर लौट आये।
घर पहुँच कर मनु ने एक पाव खिला कर बापू को दवाई दे दी।
एक आध घंटा बैठ दादी अपने घर लौट गयी।
धीरे -धीरे बापू की तबियत संभलने लगी. और दादी भी इस बीच आती रही।
वो उसके पिता को अपने तरीके से शिक्षा का महत्त्व समझाती ।
शायद उसके पिता को भी साक्षरता का महत्त्व समझ आ रहा था
'माताजी आप हर दिन कुछ न कुछ लेकर आ जाती हैं' बापू ने कहा।
'मैंने मनु को अपनी पोती माना हैं , इस नाते तुम मेरे बेटे हुए , तो क्या एक माँ अपने बेटे से पैसे लेगी 'उन्होंने कहा; अगर कुछ देना ही चाहते हो तो मुझे तो, एक चीज़ दे द, मेरी पोती को उसके ख्वाब पुरे करने की इज़ाज़त दे दो।
बापू ने मनु को पुकारा ' मनु '
'क्या हैं बापू 'उसने कहा
बापू ने मनु के हाथो को अपने हाथो में लेकर कहा 'आज से ये हाथ सिर्फ और सिर्फ किताब और कलम उठाएंगे; और उसे अपने सीने से लगा लिया।
मनु ,बापू और दादी इन तीनो की आँखों से ख़ुशी के आंसू बह रहे थे।
दादी ने अपनी बहु से बात की और उनकी बहु ने स्कूल वालो से।
कुछ दिनों बाद फिर से मनु का दाखिला हो गया।
आज वो घडी आ गयी, जिसका इंतज़ार मनु को कब से था.
एक नयी सुबह, नयी रौशनी लिए, बाँह फैलाये उसका कर रही थी इंतज़ार।
और मनु नयी उड़ान के लिए थी तैयार।
nice....
ReplyDeletePhotography
Writing
वाह, भावप्रवण और शिक्षा प्रद कथा , पूरा न्याय किया है आपने पात्रो के साथ . ,
ReplyDeleteसकारात्मक सोच को प्रेरित करती लाजवाब कहानी।
ReplyDeleteसादर
भावप्रवण लाजवाब कहानी।
ReplyDeleteनेटवर्क की सुविधा से लम्बे समय से वंचित रहने की कारण आज विलम्ब से उपस्थित हूँ !
ReplyDeleteभाद्र पत् के आगमन की वधाई !!
अच्छे चर्चा-संयोजन के लिये वधाई !!
बहुत भावपूर्ण कहानी है. सच्ची लगन हो तो रास्ते निकल ही आते हैं. हर मनु को एक दादी मिल जाती काश.
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और सरल कहानी. कुछ खट्टी-मीठी यादें. कुछ गुज़रा वक़्त, कुछ कल की उम्मीद. अच्छी लगी. :)
ReplyDeleteअच्छी कहानी।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर संदेश प्रसारित करती एक प्रेरक कहानी । काश इन परिस्थितियों से गुजरने वाली हर लड़की को मयंक की दादी की तरह ही कोई मसीहा मिल जाये ।
ReplyDeleteअच्छी कहानी
ReplyDeleteबहुत बढ़िया कहानी
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया मर्मस्पर्शी कहानी। काश हर मनु को ऐसी दादी मिल पाती...
ReplyDelete