बात तब की हैं जब शाहरुख़ खान सिर्फ शाहरुख़ खान हुआ करते थे तब उनके साथ में 'बादशाह खान' या 'किंग खान' का टाईटल नहीं जुड़ा था। ये वो दौर था जब वो कुछ बनना चाहते थे, या यूँ कहे की मनोरंजन की दुनिया में अपना एक मुकाम हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
आज -कल हमारे पास अपने मन बहलाने के लिए कितने ही अनगिनत मनोरंजन के चेनल्स मौजूद हैं...पर मैं उस दौर की बात कर रही हूँ जब हमारे पास मनोरंजन हेतु दूरदर्शन के अलावा कोई और विकल्प उपलब्ध नहीं था सो ले देके जो एक मात्र मनोरंजन का विकल्प था और वो था दिल्ली दूरदर्शन।
बात सन 1९८८ की हैं जब दिल्ली दूरदर्शन पर 'फौजी ' नामक सीरियल शुरू हुआ। और कुछ ही दिनों मे ये सीरियल लोगो को बेहद पसंद आने लगा और इस सीरियल मे लेफ्टिनेंट अभिमन्यु राय का पात्र निभाने वाले कलाकार शाहरुख़ खान ने लोगो के दिल मैं खास जगह बना ली । हर उम्र की महिला शाहरुख़ खान की फेन थी।
हमारी कॉलोनी की महिला मण्डली जब भी किसी अवसर पर मिलती तो उनकी जुबा पर सीरियल फौजी और मिसटर खान का ही चर्चा होता था ...जैसे उनके पास बात करने के लिए कोई और विषय बचा ही नहीं हो।जब कॉलोनी की महिलाओ का ये हाल था तो मैं इस चुम्बकीय आकर्षण से कैसे बच के रह सकती थी,उस वक़्त उम्र भी कुछ ऐसी थी जहाँ ऐसा आकर्षण होना स्वाभाविक सी बात हैं । जहाँ हर रात हम ख्वाबो मैं अपने ख्वाबो के शहजादे का चित्र बनाया करते थे ..और जब देखा उन्हें तो बस एक ही गीत होठों पर आया 'उनसे मिली नज़र के मेरे होश उड़ गए'....हा....हा....हा ...सच मैं क्या दीवानापन था।
जब मैं वो सीरियल देखती तो मुझे पूरी टीवी स्क्रीन पर शाहरुख़ ही शाहरुख़ नज़र आता,बाकी और कलाकार तो मेरे लिए बोने ही थे। मैं जानती हूँ की हर पात्र का विशिष्ट स्थान होता हैं ..पर ये एक ऐसा खिचाव था जो हर पल मुझे अपनी और खिचता रहता और मुझे उस खास फौजी के अलावा कोई और नज़र ही नहीं आता था। एक बार सीरियल देखते वक़्त अचानक मेरी नज़र स्क्रीन से हटकर कमरे के दूसरी तरफ गयी तो क्या देखती हूँ मेरी मम्मी मुझे देख मंद -मंद मुस्कुरा रही हैं। मैं झेप गयी। बड़ी शर्मिंदगी भी महसूस हुई। उस वक़्त तो ऐसा लगा की ज़मीन फट जाए और मैं उसमे समा जाऊ।
एक दिन पापा के मित्र घर पर आये और उन्होंने अपनी बिटिया की शादी का निमंत्रण पत्र दिया। उनके जाने के बाद जब मैंने कार्ड खोल कर देखा तो रिसेप्शन उस दिन और उस समय का था जिस वक़्त वो सीरियल के आने का वक़्त हुआ करता था। मैंने मम्मी से कहा "मैं रिसेप्शन मे नहीं जाउंगी"। बहुत से बहाने बनाये ...पर मेरा कोई बहाना नहीं चला और मुझे रिसेप्शन मैं जाना पड़ा।
..खेर रिसेप्शन मे तो मैं चली गयी लेकिन मेरी नज़र बार -बार कलाई पर बंधी घडी पर जाती रही ...टिक ...टिक ....टिक ..चलती जाए घडी और थोड़ी देर मे किसी ने आकर कहा "आप लोग भोजन कर लीजिये" मैंने घडी मे देखा ज्यादा वक़्त नहीं बचा था सीरियल के शुरू होने मे।मेरे सीरियल देखने का उतावलापन हमारे पड़ोस मैं रहने वाली दीदी समझ गयी उन्होंने कहा "फटाफट खाना खा ले हम सीरियल के वक़्त तक पहुच जायेंगे।कही वो भी मेरी तरह शाहरुख़ खान की दीवानी तो नहीं थी पर उस वक़्त इस बात पर गौर करने का वक़्त नहीं था की कौन दीवाना है और कौन नहीं मेरे लिए तो सबसे मुख्य बात थी की खाना खा के घर पहुचना।
खाना खा के हम जैसे ही घर तक पहुचे तो दीदी ने कहा "जल्दी से चाबी दे ताला खोलती हूँ। मैंने कहा "मेरे पास तो चाबी हैं ही नहीं मुझे लगा की आपने अपने घर की चाबी ले ली होगी इसलिए मैंने अपनी मम्मी से चाबी ली ही नहीं । पीछे मुड़ कर देखा शायद दीदी के मम्मी पापा या मेरे मम्मी पापा आते हुए दिखाई दे पर दूर -दूर तक कोई नज़र नहीं आया । अब क्या करे ..तभी दीदी ने कहा "देख वो सामने वाली बिल्डिंग मे नीचे ग्राउंड फ्लोर के घर की बत्ती जल रही हैं शायद वो लोग घर में है .घर मैं आंटी जी हुई तो हम उनके घर बैठकर सीरियल देख सकते हैं । वो आंटी जी से पहचान तो थी पर इतनी भी नहीं की उनके घर मे बैठकर सीरियल देखा जाए। बड़ा अजीब सा लग रहा था लेकिन शाहरुख़ खान को देखने की चाह इतनी ज्यादा थी की हमने आंटी जी के घर की डोर बेल बजा दी। जब दरवाजा खुला तो हमने सकुचाते हुए आंटी जी से कहा "क्या हम आपके यहाँ बैठकर टीवी देख सकते हैं आपको कोई परेशानी तो नहीं होगी । उन्होंने हँसते हुए कहा अरे !परेशानी कैसी आजाओ तुम लोग ।
तो देखा आपने इस तरह मैंने अपने पसंदीदा सीरियल या अपने शाहरुख़ को देखने की चाह पूरी की
धीरे -धीरे वक़्त के साथ यह दीवानापन, बावलापन इत्यादि,इत्यादि जाता रहा।
अभी जभी किसी को यह कहते हुए सुनती हूँ की वो फलां हीरो या फलां हिरोइन के फेन हैं ..तो मुझे
बड़ा अजीब लगता हैं ..और जब देखती हूँ की कोई तो अपने पसंदीदा कलाकारों के लिए मंदिर तक
बना देते हैं .....तो मैं हँसते हुए कहती हूँ "पगला गए हैं सब "।
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बहुत ही रोचक आलेख।
ReplyDeleteबहुत मज़ा आया पढ़ कर।
सादर
रोचक ...वक़्त वक़्त की बात है .... ऐसा ही क्रेज़ राजेश खन्ना का हुआ करता था :):)
ReplyDeleteमेरी टिप्पणी कहाँ है ?
ReplyDeleteहमारे समय में लोग राजेश खन्ना के दीवाने थे
ReplyDeleteअरे शीतल जी हमारी दीवानगी तो फौजी से शुरू होकर six packs तक चली....
ReplyDelete:-)
अब बच्चों ने डाट कर ताने मार कर भूत उतार दिया :-)
रोचक लगा आपका लेख...
शुभकामनाएँ.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
Deleteबेहतरीन भाव पूर्ण सार्थक रचना,
ReplyDeleteशिवरात्रि की शुभकामनाएँ।
रोचक वाकया है ..वाकई फौजी के अभि का जबर्दस्त्त क्रेज था.हम भी दीवाने थे पर अब शाहरुख खान साहब झेले नहीं जाते :).
ReplyDeleteसच में अब झेले नहीं जाते... :)
Delete:-)
ReplyDeleteFinally, grown up!?
Good one!
Ashish
badia hai apka dewanapan..
ReplyDeletehe he he ...aisa hi kuchh haal hamara bhi tha par sharukh ke liye nahin swargeey devanand sahab ke liye ...sach vo bhi klya din the alhad mast ...apki post badhiya lagi ...likhate rahiye apko padhana achha laga :)
ReplyDeleteउस जमाने से अब तक मैं भी शाहरुख खान की फैन रही हूँ. किसी तरह उस सीरियल को देखने का मौक़ा हम गंवाते नहीं थे. उस उम्र में ऐसी ही दीवानगी होती है जैसी आपकी थी. बहुत अच्छा लगा आपके संस्मरण को पढकर. बहुत रोचक लेख, बधाई.
ReplyDeleteAAPKA ARTICLE PADHKE ACHCHA LAGA SHEETAL JI, SRK SAMBANDHIT AUR ARTICLE LIKHIYE, I'M BIG FAN OF SRK...
ReplyDeleteSundar Aalekh.
ReplyDeletemai to srk ke ki big fan hu,aur unki family ki bhi,mera bhi aisa hi kuch hai maine kkhh ye film bahot bar dekhi hai aur mai unko dekhte hi khud mai kho jaji hu.
ReplyDeleteawesome writing
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