Tuesday, May 18, 2010

नानी की पोटली से [ भूली बिसरी एक कहानी ]

जब छोटी थी, तो कहानियां सुनने का बहुत शोक था। शोक तो अभी भी है, लेकिन अब नानी नहीं है जो मुझे ढेर सारी कहानियाँ सुनाया करती थी । नानी की पोटली मे कहानियों का अम्बार रहता था। कभी वो मुझे राजा हरिश्चंद्र की तो कभी मोरध्वज की तो कभी धार्मिक कथाये - जैसे सूरज भगवान् की, कभी गणेश भगवान् की तो कभी किसी अन्य देवी देवताओ की कहानियाँ सुनाया करती थी । नानी कि कहानियाँ विशाल महासागर के गर्भ मे छुपे वो दुर्लभ मोती है , एक अनमोल खज़ाना है । चलिए ज्यादा वक्त न लेते हुए आपको नानी के द्वारा सुनाई हुई एक कहानी सुनती हूँ ।
कहानी का शीर्षक है : सोना बाई

बहुत साल पहले कि बात है, एक नगर मे सात भाई रहा करते थे । उन सात भाइयों कि एक बहन थी जिसका नाम सोना बाई था । जैसा नाम वैसा ही रूप, सुनहरे बाल, कंचन काया ,बोली इतनी मीठी की सुनने वाला सुनता ही रहे । अपने माता -पिता और भाइयों की लाडली थी सोना बाई ।

धीरे -धीरे वक़्त बीतने लगा , समय पंख लगा कर उड़ा जा रहा था । सोनाबाई अब ११ वर्ष कि हो रही थी। सातो भाइयों का विवाह हो चूका था । सातो भाई अपनी -अपनी पत्नियों के साथ अलग -अलग घरो मे रहने लगे थे । सोनाबाई के लिए भाइयों के दुलार और प्यार मे कोई कमी नहीं आई थी । भाइयों का यह प्यार सोनाबाई के लिए मुसीबत का कारण बन जाएगा यह उसने कभी सोचा न था । दरअसल भाभियों को भाइयों का सोनाबाई के प्रति स्नेह डाह यानी द्वेष का कारण बन गयी थी। भाभियाँ सोचती किसी तरह सोनाबाई नाम का काँटा उनके जिंदगी से निकल जाए । और एक दिन उन्हें यह मौक़ा मिल भी गया ।

एक दिन सोनाबाई अपनी भाभियों के साथ जंगल मे मिट्टी खोदने गयी । जिस जगह से सोनाबाई मिट्टी खोदती वहां से हीरे -मोती , सोना -चांदी निकलता । भाभियों ने जब यह सब देखा तो सोनाबाई से बोली "बाईसाब थे अठे आओ -यानी कि इधर आओ , आप यहाँ मिट्टी खोदो। सोनाबाई उनके मन मे आये लालच को समझ ना सकी और उनकी बतायी जगह से मिट्टी खोदने लगी । जहाँ सोनाबाई पहले मिट्टी खोद रही थी,जब उन्होंने उस जगह कि मिट्टी को जाकर छुआ तो, उस मिट्टी से निकले हीरे-मोती , सोना-चांदी फिर मिट्टी मे परिवर्तित हो गए। हद तो तब हो गयी जहाँ पहले वे मिट्टी खोद रही थी , वो जगह सोनाबाई के हाथ का स्पर्श पाते ही फिर से हीरे -मोती, सोना-चांदी उगलने लगी । "आज तो सोनाबाई का हिसाब कर ही देना चाहिए" भाभियों ने आपस मे कहा। और अपनी योजना के मुताबिक़ उसे जंगल मे छोड़कर चली आई । घर आकर वे सब छाती पीट -पीटकर रोने लगी और कहने लगी "हाय हमारी सोना को तो जंगली जानवर उठा कर ले गया"। भाइयों ने कहा कि " हमें उस जगह पर ले चलो जहाँ यह घटना हुई है"। यह सुनकर वे सब घबरा गयी बोली "आपको क्या लगता है, हमने पीछा ना किया होगा, अरे बहुत बड़ा जंगली जानवर था और वो हमारी सोना को जंगल के भीतर बहुत गहरे ले गया है, अब कुछ फायदा नहीं वहां जाने का" । माँ -बाप बेटी के गम मे बेसुध हो गए थे। भाइयों को लगा उनके शरीर से आत्मा निकल गयी है।

इधर जंगल मे जब सोनाबाई ने देखा की उसकी भाभियों का कही कोई अता -पता नहीं है तो वो बिलख -बिलख कर रोने लगी। सूरज ढलने को था , धीरे -धीरे शाम गहरा रही थी । 'अलख-निरंजन ' की आवाज़ लगता हुआ एक साधू -बाबा निकला । "क्या हुआ बेटी तुम क्यों रो रही हो "बाबा ने पूछा । फिर सोनाबाई ने अपनी आप-बीती उस बाबा को बताई । साधू ने जब टोकरी पर नज़र डाली तो उसकी आँखे चुंधिया गयी । वो बाबा साधू के रूप मे एक पाखंडी था । वो सोनाबाई को बहला -फुसलाकर अपने घर ले आया ।
उसने सोनाबाई के सुनहरे बालो को कटवा दिया और लडको जैसे कपडे पहना दिए। सोनाबाई को घर से बाहर निकलने की इजाज़त नहीं थी । साधू रोज़ नगर जाता और भिक्षा मांग कर लाता, खुद भी खाता सोनाबाई को भी देता । सोनाबाई हर वक़्त उस कैद से निकल जाने का रास्ता खोजा करती ।

एक दिन साधू बीमार पड़ गया । वो ऐसी हालत मे नहीं था कि भिक्षा मांगने जा सके ।" मैं तो जा नहीं सकता अब भोजन की व्यवस्था किस तरह से होगी" उसने कहा। आप चिंता मत करो मैं चली जाती हूँ भिक्षा मांगने । ऐसा कहकर सोनाबाई चली गयी । रास्ते मे एक राहगीर से नगर का रास्ता पूछा और उसके बताये रास्ते पर चलते -चलते नगर पहुच गयी । सोनाबाई की यादाश्त बड़ी तेज़ थी, उसे अपने सभी भाइयों के घर का रास्ता पता था । वो सबसे पहले सबसे बड़े भाई के घर गयी और वहां जाकर उसने यह पंक्तिया गायी। सात भाई बीच सोनाबाई बेटी, मोतीडा बीनता, जोगीड़ा ने पकड़ा
,माई माई भिक्षा दे । भाई ने जब यह आवाज़ सुनी तो तुरंत पहचान लिया अरे !, ये तो मेरी लाडली बहन सोना कि आवाज़ है। भाभी ने बहुत रोकने की कोशिश की पर अब भाई कहाँ रुकने वाला था । उसने आवाज़ लगा कर अपनी बहन को ऊपर बुला लिया । दोनों भाई -बहन गले लगकर बहुत रोये । बाकी भाइयों को और माता -पिता को सोनाबाई के मिलने का समाचार मिला वो दौड़े दौड़े आये । जब भाइयों को अपनी पत्नियों कि असलियत पता चली तो सबने अपनी पत्नियों को छोड़ने का फैसला कर लिया। लेकिन सोनाबाई ने अपने भाइयों को बहुत समझाया तो वो सब कहने लगे कि एक शर्त पर अपनी पत्नियों को माफ़ करेंगे कि उन सभी को सोनाबाई के पैरो मे गिरकर क्षमा मांगनी पड़ेगी । सभी ने सोनाबाई से माफ़ी मांगी।एक बार फिर वो सब ख़ुशी -ख़ुशी रहने लगे ।

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