Tuesday, June 1, 2010

नानी की पोटली से [भूली -बिसरी एक कहानी ]

...लो मैं फिर आगई हूं, सुनाने आप सभी को एक कहानी । अरे, ये मैं क्या देख रही हूं, सब बड़े व्यस्त लग रहे है, कोई के हाथ मे चाय की प्याली, कोई के हाथ मे coffee का मग है, कोई लगा है पानी पीने। चलिए जल्दी -जल्दी अपना काम ख़त्म करिए। और हा, जो लोग चश्मा लगाते हो, वो जाइए और अपना चश्मा ढूंढ़ कर लाइए।
यह हुई न बात, अब लग रहा है की, सब लोग बड़े उत्साह से कहानी सुनने को तैयार है ।
आज की कहानी है - चलिए आज एक काम करते है, कहानी सुनने के बाद जो शीर्षक आप इस कहानी को देना चाहे, अपनी -अपनी राय मुझे बतलाये, और जिसका शीर्षक ज्यादा उपयुक्त होगा वही इस कहानी का शीर्षक होगा।
तो शुरू होती है अपनी कहानी
जंगल के बाहर एक छोटी सी बस्ती थी। उसी बस्ती मे मोहन अपनी विधवा बूढी माँ के साथ रहता था । मोहन की माँ लोगो के कपडे सिलकर अपना और अपने बेटे का भरण -पोषण किया करती थी । उस बूढी माँ का एक ही सपना था की मोहन भी औरो की तरह पढलिख जाए, उसे किसी अच्छी जगह काम मिल जाए, दिन -रात माई यही सपना देखा करती।
एक दिन जब माई रसोई मे काम कर रही थी, उसे किसी के सुबकने की आवाज़ सुनाई दी । वो हडबडाकर बाहर निकली तो क्या देखती है की उसके जिगर का टुकड़ा, उसका लाल मोहन चारपाई पर बैठा रो रहा था । माई ने आकर उसके सर पर हाथ फिराते हुए पूछा "क्या बात है बेटा,तू क्यूँ रोता है"? तब मोहन ने कहा "माई मैं आज से पाठशाला नहीं जाउंगा । यह सुनकर माई की आँखों के आगे अँधेरा छा गया, ऐसा लगा जैसे किसी ने उसे आसमान से सीधा जमीन पर पटक दिया हो। मगर अपने मन को शांत रख कर उसने अपने बेटे से पाठशाला ना जाने का कारण पूछा । मोहन कहने लगा "पाठशाला से लौटते वक़्त शाम होने लगती हैं और शाम ढलते ही जंगली जानवरों के शोर से मुझे बड़ा भय लगता है, पाठशाला से घर तक आने का और कोई रास्ता नहीं है । माई ने लाख समझाने की कोशिश की पर मोहन नहीं माना ।
रात भर माई चिंता मैं घुलती रही, अब क्या होगा, यही विचार उसके दिमाग को परेशान करता रहा। सुबह उठी तो किसी काम मे उसका मन नहीं लग रहा था। "माई भूख लगी है कुछ देना खाने को "मोहन की आवाज़ सुन कर वो जैसे -तैसे उठकर रसोई मे गयी और नाश्ता बनाने लगी। नाश्ता करके मोहन बस्ती मे ही रहने वाले एक दोस्त के घर खेलने चला गया। रसोई का काम सलटाकर माई बाहर निकली तो दीवार पर टंगी बांकेबिहारी की तस्वीर को देख उसकी आँखों मे आंसू आ गए मन ही मन प्रभु से कहने लगी " यह क्या किया भगवन तुने,मुझ गरीब बुढिया की क्यों परिक्षा लेते हो"। ऐसा विचार करते -करते वो चारपाई पर आकर लेट गयी। दो पल के लिए आँख अभी लगी ही थी की, किसी की पुकार सुनकर वो जाग गयी , बाहर आकर देखा तो सामने चोदह -पन्द्रह बरस का बालक खडा था । घुंघराले केश, साँवली सूरत, केशरिया कुर्ता, सफ़ेद धोती, हाथ मे एक छड़ी। माई तो उस मोहिनी सूरत को देखती रह गयी । "बेटा कौन हो तुम?,कहाँ से आये हो ?। तब उस बालक ने बताया मेरा नाम गोपाल हैं ,मुझे सावित्री चाची ने भेजा हैं फिर उसने आगे कहना शुरू किया "चाची बता रही थी की मोहन को पाठशाला से लौटते वक़्त जंगली जानवरों की आवाज़ से डर लगता हैं ,उन्होंने मुझसे कहा हैं की मैं मोहन को पाठशाला से हर दिन घर तक छोड़ दिया करू । अब आप मोहन से कहना बिल्कुल भी न डरे, उसके गोपाल भैय्या उसे घर तक छोड़ दिया करेंगे। "पर बेटा तुम सावित्री के कौन लगते हो" माई ने पूछा। पूछने पर पता चला की वो सावित्री के दूर का रिश्तेदार हैं । "भला हो सावित्री का, जो उसने मेरी परेशानी को समझा और तुम्हे मेरी मदद के लिए भेज दिया,मैं आज ही उससे मिलकर उसका शुक्रियदा करुँगी"माई ने कहा । "चाची उसके लिए तुम्हे थोडा इंतज़ार करना पड़ेगा क्यूंकि सावित्री चाची तो आज ही तीर्थयात्रा के लिए निकल गयी हैं" इतना कहकर गोपाल चला गया । जब शाम को मोहन घर लौटा तो माई ने सारी बात बतायी, यह सुनकर वो ख़ुशी से उछल पडा। अब हर दिन का यह नियम बन गया था,जंगल के छोर पर आकर वो आवाज़ लगाता "गोपाल भैय्या ,गोपाल भैय्या और गोपाल भैय्या सामने हाज़िर ।
एक दिन पाठशाला मे खीर बनाने की प्रतियोगिता थी और मास्टरजी ने सबको दूध लाने को कहा। उसकी कक्षा मे सभी संपन्न परिवार के बच्चे थे, दूध लाना उनके लिए कोई बड़ी बात न थी। मोहन ने माई से कहा "माई मूझे भी दूध चाहिए"। माई कहने लगी "बेटा मैं कहा से लाऊ,घर मे खाने को पूरा नहीं पड़ता । मोहन उदास हो गया और घर के एक कोने मे जाकर बैठ गया। अगले दिन वो अनमना सा हो पाठशाला के लिए निकला, जंगल के किनारे पहुचा तो देखता है सामने गोपाल भैय्या खड़े है। भैय्या के हाथ मे मिटटी का कुल्हड़ था उसे देते हुए कहने लगे "ले, आज तेरी पाठशाला मे खीर बनाने की प्रतियोगिता है न, यह कुल्हड़ भर दूध ले जा। कुल्हड़ भर दूध देख मोहन को ग़ुस्सा आ गया कहने लगा "आप भी मेरे से मसखरी करते हे,क्या पूरी कक्षा के बीच मेरा मज़ाक उड़वाओगे"। "नाराज़ मत हो लेके तो जा यह कहकर उन्होंने दूध से भरा कुल्हड़ मोहन के हाथ थमा दिया और चले गए।
पाठशाला पहूच कर वो देखता हे सभी बच्चे कनस्तर भर दूध लाये हे और वो कुल्हड़ भर दूध । गुरूजी सभी बच्चे के दूध के कनस्तरो को एक बड़े से पतीले मे खाली करवा रहे थे। "गुरूजी मेरा लाया हुआ दूध भी पतीले मे खाली कर लो "वो कहने लगा । गुरूजी ने उसके कुल्हड़ भर दूध की और देखा और चिढ कर कहा "जाओ उस पतीले मे खाली कर दो । मोहन ने दूध गुरूजी के बताये पतीले मे खाली कर दिया। "गुरूजी पतीला पूरा भर गया, अब यह दूध कहाँ खाली करू "उसने कहा । गुरूजी अचरज मे पड़ गए,कुल्हड़ भर दूध मे पतीला किस तरह भर गया। फिर भी गुरूजी ने कहा " जाओ दूसरे पतीले मे डाल दो। यह क्या दूसरा पतीला भी भर गया, ऐसा करते -करते वहां रखे सभी पतीले भर गए,मगर कुल्हड़ का दूध ख़त्म न होता था ।पूरी पाठशाला मे मोहन के लाये हुए दूध की चर्चा होने लगी।
गुरूजी खुश होने के बजाय क्रोधित हो गए, मोहन के कान को मरोड़कर कहाँ "बता यह दूध कहा से लाया,क्या जादू -टोना किया हे इस दूध मे, हम सभी को मारना चाहता था। तडाक करके एक तमाचा मोहन के गाल पर रसीद दिया। मोहन ने कहा "गुरूजी मूझे मत मारो यह दूध तो मूझे मेरे गोपाल भैय्या ने दिया हे"। "चल मिला हमको तेरे गोपाल भैया से "ऐसा कहते हुए गुरूजी मोहन को घिसिटते हुए ले जाने लगे । आगे -आगे गुरूजी और मोहन, पीछे -पीछे पूरी पाठशाला । जंगल के उस किनारे पर पहुचे जहाँ मोहन गोपाल भैय्या से मिला करता था । "बूला अपने गोपाल भैय्या को"। उसने आवाज़ लगाई गोपाल भैय्या , गोपाल भैय्या कहा हो तुम देखो सब आये हे आप से मिलने । जो गोपाल भैय्या मोहन की एक आवाज़ सुनकर आ जाया करते थे,आज इतना पुकारने पर भी नहीं आ रहे थे । मोहन का रो -रो कर बुरा हाल हो रहा था। अचानक सामने से एक आलोकिक प्रकाश उठा। उस तेज दिव्य ज्योति के आगे सबकी आँखे चुंधिया गयी । मोहन ख़ुशी से नाच उठा "देखो गुरूजी वो खड़े मेरे गोपाल भैय्या और उसने उस प्रकाश की और इशारा किया ।
अब गुरूजी को समझते देर न लगी यह कोई और नहीं बांकेबिहारी, बंशीधर ,भगवान् श्री कृष्ण है। मोहन आज तेरी वजह से हमें प्रभु के दर्शन हुए। ऐसा कहते हुए गुरूजी की आँखों में से अश्रु बहने लगे । " कभी निर्बल पर अत्याचार मत करो, मैं हमेशा उनका साथ देता हू जो दिल के साफ़ होते है,छल-कपट से जो दूर रहते है, जो दुसरो की परवाह करते है, अगर मूझे पाना चाहते हो तो मेरे बताये रास्ते पर चलो इतना कहकर प्रभु गायब हो गए । एक बार फिर गुरूजी ने मोहन से माफ़ी मांगी और उसे अपने गले से लगा लिया ।